पीरियड्स से जुड़े अंधविश्वास और कुरीतियां ही सिर्फ महिलाओं के लिए परेशानी खड़ी नहीं करते बल्कि हाइजीन की कमी भी एक बड़ी समस्या है. महिलाओं को पीरियड्स के दौरान खुजली, सूजन और इंफेक्शन जैसी दिक्क्तें भी इसी कारण होती हैं. पीरियड्स में साफ—सफाई न हो पाने का बड़ा कारण है सेनेटरी नैपकिंस उपलब्ध न होना. नैपकिंस की महंगी कीमत इसे लोगों की पहुंच से बाहर कर देती है.
हाल ही में 'शी सेज'(she says) नाम के एक ग्रुप ने ट्विटर पर #LahuKaLagaan नाम से एक कैंपेन चलाया है. इस कैंपेन के जरिए सेनेटरी नैपकिन पर लगे टैक्स को हटाने की मांग की गई है. कैंपेन का कई लड़कियों ने समर्थन किया है और वित्त मंत्री अरुण जेटली से इस संबंध में अपील भी की गई है.
128 साल भी हालत बदतर
दरअसल, सेनेटरी नैपकिन की उपलब्धता और कीमत की समस्या जितनी महत्वपूर्ण है उतना ही उसे नजरअंदाज किया गया है. देश में मिलने वाले सेनेटरी नैपकिन की कीमतें देखें तो ये सरकार द्वारा जीवनयापन के लिए जरूरी बताई गई न्यूनतम आय से भी ज्यादा है. सस्ते से सस्ते पैक की कीमत भी एक गरीब परिवार के लिए चुका पाना बेहद मुश्किल होता है. इनके बाजार में आने के 128 साल बाद भी स्थिति दयनीय है. एक आंकड़े के मुताबिक 35.5 करोड़ महिलाओं में से सिर्फ 12 प्रतिशत ही सेनेटरी पैड इस्तेमाल करती हैं.
सेनेटरी नैपकिन तीन से चार साइज में मिलते हैं. इसके एक पैकेट में छह या सात पीस होते हैं और इस हिसाब से हर महीने करीब दो पैकेट इस्तेमाल हो जाते हैं. सबसे छोटे साइज के पैक की कीमत 20 रुपए और मीडियम साइज की 40 से 50 रुपए है. वहीं, सबसे बड़े साइज के पैड की कीमत 75 रुपए से लेकर 150 से ज्यादा तक हो सकती है. दिहाड़ी के हिसाब से कमाने वाले एक परिवार के लिए इतने महंगे पैड खरीद पाना नामुमकिन लगता है. यहां तक की मध्यम वर्गीय परिवार की लड़कियां तक लार्ज साइज के पैड नहीं खरीद पातीं.
जरूरत है कि सरकार इन सेनेटरी पैड को सस्ता करने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाए. पैड से टैक्स हटाना एक उपाय हो सकता है. वर्तमान में लगने वाले टैक्स पर नजर डालें तो कई राज्यों में 14.5 प्रतिशत तक टैक्स लगता है. इसके बाद कीमत में पैड के साइज के हिसाब से 2 से 21 रुपए तक की बढ़ोतरी हो जाती है. वहीं, जीएसटी में भी सेनेटरी पैड पर 12 प्रतिशत टैक्स लगाने का प्रावधान किया गया है. जबकि देश में कई ऐसी चीजें हैं जिनके महत्व को देखते हुए उन्हें टैक्स फ्री किया गया है.

टैक्स हटाना एक रास्ता
भारत में कॉन्डम भी टैक्स फ्री है और उसके लिए वेंडिंग मशीन लगाई गई हैं. कॉन्डम ऐसा सामान है जिसकी जरूरत दोनों जेंडर को होती है लेकिन सेनेटरी नैपकिन सिर्फ महिलाओं की जरूरत है. ऐसे में इस पर ध्यान न देना सवाल भी खड़ा करता है.
वहीं, सरकार ने अगरबत्ती, चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी, पतंग और लकड़ी के खिलौनों तक को कर मुक्त रखा है. हालांकि, दिल्ली सरकार इस मामले में आगे आई है और 2017-18 के बजट में 20 रुपए तक के पैड को टैक्स मुक्त किया गया है. वहीं, इससे ज्यादा कीमत के पैड पर 12.5 प्रतिशत के टैक्स को घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है.
इसके अलावा सेनेटरी नैपकिन के लिए सब्सिडी देने का तरीका भी अपनाया जा सकता है. इसके तहत देश में सेनेटरी नैपकिन के निर्माण में सब्सिडी देना एक रास्ता हो सकता है. साथ ही नैपकिन की गुणवत्ता का मसला भी महत्वपूर्ण है. अगर महिलाओं के लिए इस प्राकृतिक प्रक्रिया को सुविधाजनक और सामान्य बनाना है तो कई स्तर पर काम किए जाने की जरूरत है
source: News 18